लोक आस्था के महापर्व छठ की शुरुआत आम तौर पर दिवाली के छह दिन बाद होती है। लोग बेसब्री से इस महापर्व का इंतजार करते हैं। हिन्दू धर्म में इसका का बड़ा महत्व है। मुख्यतौर पर छठ पूजा बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है। लेकिन, अब बड़े पैमाने पर देशभर के कई राज्यों और विदेशों में भी मनाया जाता है।इस व्रत में सूर्य भगवान को अर्घ दिया जाता है लेकिन उसका भी मुहूर्त होता है और उस शुभ मुहूर्त में ही भगवान सूर्य को अर्घ दी जाती है. कहा जाता है कि यह सूर्य उपासना का पर्व है और इस पर्व के करने से कई सारी रोगों से भी मुक्ति लोगों को मिल जाती है.क्या है महत्व?मान्यता है कि छठ महापर्व पर माताएं अपनी संतान की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और भविष्य के लिए सूर्य देव और छठी मैया की पूजा-अर्चना करती है। इस दौरान महिलाएं 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं। यही वजह है कि इस व्रत को सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है।क्या होता है? शुभ मुहूर्त कब है?नहाय-खाय से छठ पूजा की शुरुआत होती है। इस बार पांच नवंबर यानी मंगलवार को नहाय खाय है। इस दिन स्नान करके भोजन करने का विधान है। नहाय खाय के दिन व्रत करने वाली महिलाएं नदी या तालाब में स्नान करती हैं। छठ पूजा के दूसरे दिन को खरना कहा जाता है। इस बार खरना छह नवंबर यानी बुधवार को है। इस दिन माताएं दिनभर व्रत रखती हैं और पूजा के बाद खरना का प्रसाद खाकर 36 घंटे के निर्जला व्रत का आरंभ करती है। इस दिन मिट्टी के चूल्हे में आम की लकड़ी से आग जलाकर प्रसाद बनया जाता है।छठ का पहला अर्घ्य और दूसरा अर्घ्य कब है?छठ पूजा के तीसरे दिन शाम के समय नदी या तालाब में खड़े होकर अस्त होते सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। इस बार सात नवंबर यानी गुरुवार को पहला अर्घ्य दिया जाएगा। इसमें बांस के सूप में फल, गन्ना, चावल के लड्डू, ठेकुआ सहित अन्य सामग्री रखकर पानी में खड़े होकर पूजा की जाती है। छठ पूजा के चौथे और आखिरी दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस बार आठ नवंबर यानी शुक्रवार को दूसरा अर्घ्य दिया जाएगा। इस दिन व्रती अपने व्रत का पारण करते हैं। साथ ही अपनी संतान की लंबी उम्र और अच्छे भविष्य की कामना करते हैं।
2024-11-02 15:08:01शरद पूर्णिमा हर साल आश्विन मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। इस दिन देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करने का विधान है। शरद पूर्णिमा की रात को बहुत खास माना जाता है, क्योंकि इस दिन चांद 16 कलाओं से भरा होता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से सुख-समृद्धि आती है।आश्विन माह में मनाई जाने वाली शरद पूर्णिमा पर खीर बनाकर उसे पूरे रात के लिए चांद की रोशनी में रखना और अगले दिन उसका सेवन करना बहुत ही शुभ माना जाता है। ऐसा करने से व्यक्ति के सौभाग्य में भी वृद्धि हो सकती है। साथ ही यह भी माना जाता है कि इस दिन पर मां लक्ष्मी की पूजा के दौरान उनके मंत्रों का जप करने से शुभ फलों की प्राप्ति हो सकती है।शरद पूर्णिमा पर क्या करेंशरद पूर्णिमा पर इन बातों का पालन करें और इस फलदायी दिन का लाभ उठाएँ। पूरी श्रद्धा के साथ व्रत रखें।भगवान विष्णु की पूजा करें।भगवान कृष्ण और देवी राधा की पूजा करें।मंत्रों का जाप करना फलदायी हो सकता है।भगवान को भोग लगाना शुभ माना जाता है।इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करें।गंगा नदी में पवित्र स्नान करें।आप JHBNEWS हिंदी को यहां सोशल मीडिया पर फ़ॉलो कर सकते हैंफेसबुक पर JHBNEWS हिंदी खबर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.यहां इंस्टाग्राम पर JHBNEWS हिंदी को फॉलो करें।यूट्यूब पर JHBNEWS हिंदी वीड़ियो देखने के लिए यहां क्लिक करें।JHBNEWS हिंदी को ट्विटर पर फ़ॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें।हमारे WHATSAPP पर JHBNEWS हिंदी से जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें।
2024-10-16 09:17:20गणेश चतुर्थी की पूरी तैयारी हो चुकी है। हर साल की तरह इस साल भी लालबागचा राजा गणेश का फर्स्ट लुक सामने आ गया है. महाराष्ट्र समेत पूरा भारत इस त्योहार को मनाने के लिए तैयार है. लेकिन, भारत में खासकर महाराष्ट्र में जब भी बप्पा की बात होती है तो सबसे पहला नाम लालबाग के राजा का आता है, जिन्हें लोग प्यार से लालबागचा राजा कहकर बुलाते हैं। लेकिन, सवाल यह है कि लालबागचा राजा कौन हैं, इस नाम के पीछे की कहानी क्या है और फिर जानिए लालबागचा राजा 2024 की थीम और लालबागचा राजा के दर्शन कैसे करें।लालबागचा राजा मुंबई के लालबाग इलाके के सबसे बड़े गणेश हैं, जिनकी मूर्ति 1934 से हर साल स्थापित की जा रही है (लालबागचा राजा इतिहास)। दरअसल, 1934 में मुंबई के लालबाग मार्केट इलाके में श्रमिकों के एक समूह ने अपनी गणेश मूर्ति स्थापित करके इस परंपरा की शुरुआत की थी। इसके पीछे कारण यह है कि मुंबई में दादर और परेल से सटा लाल बाग इलाका मेलों से घिरा रहता था। उनकी आय का एकमात्र स्रोत पेरू में रहने वाला एक ग्राहक था। लेकिन वर्ष 1932 में पेरू जाना रोक दिया गया और उनकी आजीविका को भारी नुकसान हुआ।इस बीच मछुआरों को कठिन समय से गुजरना पड़ा और उन्हें अपना माल सड़क पर बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा। तब लोगों ने धन इकट्ठा किया और भगवान गणेश की एक छोटी मूर्ति लाई और उनके सामने प्रार्थना की। 2 साल बाद इन लोगों की मनोकामना पूरी हुई और 12 सितंबर 1934 से हर साल गणेश जी की स्थापना करने की परंपरा चली आ रही है। पहली गणेश जी की मूर्ति साधारण और 2 फीट ऊंची मिट्टी की मूर्ति थी, लेकिन उसके बाद सबसे बड़ी मूर्ति लाने की परंपरा चली आ रही है। जैसे-जैसे पंडाल बड़ा होता गया, वैसे-वैसे मूर्ति का कद और लोकप्रियता भी बढ़ती गई। 1950 के दशक तक, लालबागचा राजा मुंबई में एक प्रसिद्ध गणेश पंडाल बन गया था।लालबागचा राजा को नवसाचा गणपति यानी भक्तों की मनोकामना पूरी करने वाले गणेश के रूप में पूजा जाता है। इसीलिए वे मशहूर हैं. आज लालबागचा राजा मुंबई की सबसे प्रसिद्ध गणेश मूर्तियों में से एक है, जो गणेश चतुर्थी के दौरान लाखों भक्तों और पर्यटकों को आकर्षित करती है। बड़े-बड़े नेता, अभिनेता और बिजनेसमैन भी उनके दर पर माथा टेकते हैं।गणेश चतुर्थी 2024 पी लालबागचा राजा थीम बेहद खास है। 2024 की सजावट की थीम अयोध्या राम मंदिर से प्रेरित है। प्रवेश द्वार पर भगवान राम की मूर्ति के साथ राम मंदिर की एक भव्य प्रतिकृति है। सजावट प्रसिद्ध कला निर्देशक नितिन चंद्रकांत देसाई द्वारा डिजाइन की गई है।
2024-09-07 11:20:37आज देशभर में कृष्ण जन्मोत्सव धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है। इस बार जन्माष्टमी पर बेहद ही शुभ और दुर्लभ संयोग बन रहा है। ज्योतिषों के अनुसार, ऐसा योग भगवान कृष्ण के जन्म के समय था। ऐसे में इस योग में जन्माष्टमी की पूजा करने से भक्तों को कई गुना अधिक फल मिलेगा। आइए जानते है इस साल कौनसे शुभ मुहूर्त में पूजा करने से श्री कृष्ण होंगे प्रसन्न!पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर कन्हैया का जन्मोत्सव मनाया जाता है। उनका जन्म इस तिथि पर रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इस दिन भगवान कृष्ण के बाल रूप की पूजा की जाती है। इस दौरान सुहागिन महिलाएं विधि विधान से ठाकुर जी की पूजा अर्चना करती हैं। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से जातकों को मृत्यु लोक में स्वर्ग समान सुखों की प्राप्ति होती हैं।जन्माष्टमी 2024 मुहूर्तकृष्ण जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर पूजा का मुहूर्त देर रात 12:00 से लेकर 12:45 ए एम (अगस्त 27) तक रहने वाला है। ऐसे में आपके पास 45 मिनट का समय है। ब्रह्म मुहूर्त- सुबह 4 बजकर 27 मिनट से सुबह 5 बजकर 12 मिनट तक अभिजीत मुहूर्त- सुबह 11 बजकर 57 मिनट से दोपहर 12 बजकर 48 मिनट तक
2024-08-26 08:12:21नाग पंचमी हिंदुओं का एक पारंपरिक त्योहार है और हिंदू समुदाय में इसका बहुत महत्व है. यह हर साल श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि कुंडली में काल सर्प दोष आदि भी इस दिन की गई पूजा से दूर किए जा सकते हैं।नाग पंचमी पर भगवान भोलेनाथ की पूजा के साथ उनके गले में विराजमान नाग देवता की पूजा होती है। नाग पंचमी पर नागों की पूजा करने के साथ-साथ इन्हे दूध पिलाने की भी विधान होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार नाग पंचमी पर नाग की पूजा करने से व्यक्तियों के जीवन में चल रहा कालसर्प और राहु दोष से मुक्ति मिल जाती है।नाग पंचमी के दिन ये न करे– नागपंचमी के दिन जरूरतमंद लोगों को दान करना शुभ माना गया है.– इस दिन सर्पों पूजा और को दूध से स्नान कराने से पुण्य मिलता है.– घर के मेन गेट पर नाग चित्र या घर में मिट्टी से सर्प की मूर्ति बनाएं.– नाग देवता को फूल, मिठाई और दूध अर्पित करें.– नाग पंचमी के दिन सांपों को चोट न लगे इसलिए इस दिन न खेतों में जुताई करें न पेड़ काटे.नाग पंचमी पर दुर्लभ योग09 अगस्त को नाग पंचमी का त्योहार कई दुर्लभ योगों में मनाई जा रही है। वैदिक पंचांग की गणना के मुताबिक इस वर्ष करीब 500 साल बाद दुर्लभ संयोग बना हुआ है। नाग पंचमी के दिन अभिजीत मुहूर्त के साथ-साथ अमृत काल, रवि योग, शिववास योग, सिद्ध योग, साध्य योग, बव और बालव के साथ हस्त नक्षत्र का संयोग होगा।
2024-08-09 08:08:43गुरु पूर्णिमा का पर्व बेहद खास माना जाता है। इस दिन विद्यार्थी अपने शिक्षकों को बधाई एवं शुभकामनाएं देते है। साथ ही, अपने जीवन में उनके महत्व का भी अलग-अलग शब्दों में वर्णन करते है। गुरु पूर्णिमा का पर्व भारत में 21 जुलाई 2024 को मनाया जा रहा है। यह पर्व आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन महाभारत के रचयिता वेद व्यास का जन्म हुआ था।गुरु पूर्णिमा, जिसे व्यास पूर्णिमा और वेद पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार होता है। गुरु पूर्णिमा भारत में अपने आध्यात्मिक गुरु के साथ-साथ अकादमिक गुरुओं के सम्मान में उनके प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए मनाया जाने वाला पर्व है।गुरु और शिष्य का ये पर्व केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक और शैक्षिक नजरिए से भी अति महत्वपूर्ण हैं। यह दिन पढ़ने वाले और पढ़ाई खत्म कर चुके छात्रों को यह मौका देता है कि वो अपने गुरु के प्रति आदर और सम्मान व्यक्त करें
2024-07-21 07:54:36जया पार्वती का व्रत सनातन परंपरा में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा की जाती है। आइए जानते हैं जया पार्वती व्रत पूजा विधि के बारे में। जया पार्वती व्रत आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि शिव-गौरी की पूजा करने से अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है और वैवाहिक जीवन में आने वाली समस्याओं से छुटकारा मिलता है। अविवाहित लड़कियां भी मनचाहा वर पाने के लिए जया पार्वती व्रत कर सकती हैं। पंचांग के अनुसार इस वर्ष जया पार्वती व्रत 19 जुलाई को मनाया जाएगा. यह दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा के लिए सर्वोत्तम माना जाता है। इसे गौरी व्रत के नाम से भी जाना जाता है। आइए जानते हैं जया पार्वती व्रत की सही तिथि और शुभ समय। जया पार्वती व्रत का शुभ समय हिंदू कैलेंडर के अनुसार, इस वर्ष आषाढ़ मास त्रयोदशी तिथि 18 जुलाई को रात 08:44 बजे शुरू होगी। यह तिथि 19 जुलाई को शाम 07:41 बजे समाप्त होगी. ऐसे में जया पार्वती व्रत 19 जुलाई 2024 को रखा जाएगा. जया पार्वती व्रत पूजाविधि जया पार्वती व्रत के दिन सुबह स्नान करें और व्रत रखें। फिर शिव और पार्वती की मूर्तियों को गंगा जल से शुद्ध करें। फिर एक साफ चौकी पर माता पार्वती और भगवान शिव की मूर्ति स्थापित करें। इसके बाद मां को सफेद चंदन और अक्षत पुष्प अर्पित करें। इस दिन माता पार्वती को मौसमी फल और खीर का भोग लगाएं। जया पार्वती व्रत के दिन देवी पार्वती को आभूषण अर्पित करें। अंत में व्रत कथा पढ़ें और आरती करें और भोग लगाएं।
2024-07-18 07:24:53इस वर्ष ताप्ती जयंती 13 जुलाई, शनिवार को मनाई जा रही है। प्रतिवर्ष ताप्ती जन्मोत्सव आषाढ़ शुक्ल सप्तमी को मनाया जाता है। आज सुबह श्रीकुरुक्षेत्र श्मशान भूमि जीर्णोद्धार ट्रस्ट द्वारा ताप्ती मईया को 1100 मीटर की चुंदड़ी प्रसाद के रूप में चढ़ाया गया l यह देश की प्रमुख नदियों में से एक है। श्रीकुरुक्षेत्र श्मशान भूमि जीर्णोद्धार ट्रस्ट, सूरत की ओर से सूर्योदयघाट कुरूक्षेत्र धाम पर तापी प्रागट्योत्सव मनाया गया। सुबह तापी माता की महाआरती और पूजा की गई और तापी को 1100 मीटर की चुंदड़ी चढ़ाई गई। पूर्व सांसद दर्शना जरदोश, यूथ फॉर गुजरात के अध्यक्ष जिग्नेश पाटिल और उनकी पत्नी, नगरसेवक क्रुणाल शेलर, निगम अधिकारी और नागरिक बड़ी संख्या में उपस्थित थे।आज के दिन बहुत ही शुभ माना जाता है ताप्ती जन्मोत्सव जुलाई के माह में बहुत ही हर्ष और उल्लास से मनाया जाता है, जिसमे सुरत वाशियो प्रतिवर्ष सूर्य पुत्री ताप्ती माता को लाल कलर की 108 मीटर चुनरी प्रसाद के रूप में चढ़ाई जाती है, इस दिन सभी घाट पर पूजा अर्चना करते हैं, हवन का भी प्रबंधन करते है और बहुत से स्थान पर तापी जन्मोत्सव के दिन मेला लगता है l आज के दिन सुरत वाशी ताप्ती नदी में पिछले वर्ष सुरत में स्थित नावडी ओवर पर माता ताप्ती जन्मोत्सव पर चुनरी चढ़ाई गई थीं, इस वर्ष जुलाई के महीने में ताप्ती जन्मोत्सव मनाया जा रहा है आज के दिन सुरत में स्थित कुरुक्षेत्र (शमशान घाट ) पर पूजा अर्चना और 1100 मीटर लम्बी चुनरी चढ़ाई जाएगी l
2024-07-13 14:42:41इस वर्ष ताप्ती जयंती 13 जुलाई, शनिवार को मनाई जा रही है। प्रतिवर्ष ताप्ती जन्मोत्सव आषाढ़ शुक्ल सप्तमी को मनाया जाता है। यह देश की प्रमुख नदियों में से एक है। आइए पढ़ें पुराणों में ताप्तीजी की जन्म...........|आज के दिन बहुत ही शुभ माना जाता है ताप्ती जन्मोत्सव जुलाई के माह में बहुत ही हर्ष और उल्लास से मनाया जाता है, जिसमे सुरत वाशियो प्रतिवर्ष सूर्य पुत्री ताप्ती माता को लाल कलर की 108 मीटर चुनरी प्रसाद के रूप में चढ़ाई जाती है, इस दिन सभी घाट पर पूजा अर्चना करते हैं, हवन का भी प्रबंधन करते है और बहुत से स्थान पर तापी जन्मोत्सव के दिन मेला लगता है l आज के दिन सुरत वाशी ताप्ती नदी में पिछले वर्ष सुरत में स्थित नावडी ओवर पर माता ताप्ती जन्मोत्सव पर चुनरी चढ़ाई गई थीं, इस वर्ष जुलाई के महीने में ताप्ती जन्मोत्सव मनाया जा रहा है आज के दिन सुरत में स्थित कुरुक्षेत्र (शमशान घाट ) पर पूजा अर्चना और 1100 मीटर लम्बी चुनरी चढ़ाई जाएगी l भविष्य पुराण में ताप्ती महिमा के बारे में लिखा है कि सूर्य ने विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा/ संजना से विवाह किया था। संजना से उनकी 2 संतानें हुईं- कालिंदनी और यम। उस समय सूर्य अपने वर्तमान रूप में नहीं, वरन अंडाकार रूप में थे। संजना को सूर्य का ताप सहन नहीं हुआ, अत: वे अपने पति की परिचर्या अपनी दासी छाया को सौंपकर एक घोड़ी का रूप धारण कर मंदिर में तपस्या करने चली गईं।पुराणों में ताप्ती के विवाह की जानकारी पढ़ने को मिलती है। वायु पुराण में लिखा गया है कि कृत युग में चन्द्र वंश में ऋष्य नामक एक प्रतापी राजा राज्य करते थे। उनके एक सवरण को गुरु वशिष्ठ ने वेदों की शिक्षा दी। एक समय की बात है कि सवरण राजपाट का दायित्व गुरु वशिष्ठ के हाथों सौंपकर जंगल में तपस्या करने के लिए निकल गए। प्रतिवर्ष कार्तिक माह में सूर्यपुत्री ताप्ती के किनारे बसे धार्मिक स्थलों पर मेला लगता है जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु नर-नारी कार्तिक अमावस्या पर स्नान करने के लिए आते हैं। पौराणिक तथ्य राजा दशरथ के शब्दभेदी से श्रवण कुमार की जल भरते समय अकाल मृत्यु हो गई थी। पुत्र की मौत से दुखी श्रवण कुमार के माता-पिता ने राजा दशरथ को श्राप दिया था कि उसकी भी मृत्यु पुत्रमोह में होगी। राम के वनवास के बाद राजा दशरथ भी पुत्रमोह में मृत्यु को प्राप्त कर गए लेकिन उन्हें जो हत्या का श्राप मिला था जिसके चलते उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति नहीं हो सकी।कुरुवंश की जननी हैं ताप्तीमहाभारत के अनुसार, हस्तिनापुर में एक प्रतापी राजा थे, जिनका नाम संवरण था। इनका विवाह सूर्यदेव की पुत्री ताप्ती से हुआ था। ताप्ती और संवरण से ही कुरु का जन्म हुआ था। राजा कुरु के नाम से ही कुरु महाजनपद का नाम प्रसिद्ध हुआ, जो प्राचीन भारत के सोलह महाजनपदों में से एक था। भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र में ही अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। सूर्यपुत्री ताप्ती को उनके भाई शनिचर (शनिदेव) ने यह आशीर्वाद दिया कि जो भी भाई-बहन यम चतुर्थी के दिन ताप्ती और यमुनाजी में स्नान करेगा, उनकी कभी भी अकाल मौत नहीं होगी। इस नदी में दीपदान, पिंडदान और तर्पण का विशेष महत्व है।
2024-07-13 07:04:28ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा मनाया जाता है। हिंदू धर्म में गंगा दशहरा का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन मां गंगा भगवान शिव की जटाओं से निकलकर धरती पर अवतरित हुई थी और राजा भगीरथ के पूर्वजों का उद्धार किया था। इसी के कारण हर साल ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा के रूप में मनाते है। इस साल ये पर्व 16 जून 2024, रविवार को मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल का गंगा दशहरा का दिन काफी खास है, क्योंकि इस दिन कई बड़े-बड़े शुभ योगों का निर्माण हो रहा है। जानें गंगा दशहरा का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि सहित अन्य जानकारी....जानिए गंगा दशहरा का शुभ मुहूर्त इस बार गंगा दशहरा 16 जून, रविवार को मनाया जाएगा. ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि 16 जून को रात 02 बजकर 32 मिनट से शुरू होगी और दशमी तिथि का समापन 17 जून को सुबह 04 बजकर 34 मिनट पर होगा. साथ ही इस दिन पूजन का समय सुबह 7 बजकर 08 मिनट से लेकर सुबह 10 बजकर 37 मिनट तक रहेगा.हस्त नक्षत्र प्रारम्भ - 15 जून 2024, सुबह 08:14हस्त नक्षत्र समाप्त - 16 जून 2024, सुबह 11:13व्यतीपात योग प्रारम्भ - 14 जून 2024, रात 07:08व्यतीपात योग समाप्त - 15 जून 2024, रात 08:11स्नान-दान - सुबह 04.03 - सुबह 04.43जानिए गंगा दशहरा का पूजा विधि गंगा दशहरा के दिन सुबह जल्दी उठकर पवित्र नदी में स्नान करें और सूर्य देव को जल प्रदान करें. पवित्र स्नान के लिए ब्रह्म मुहूर्त को सबसे उत्तम माना जाता है. इसके बाद गंगाजल को हाथ में लेकर व्रत का संकल्प लें. ऐसा करने के बाद मां गंगा और भगवान शिव की उपासना विधि-विधान से करें. पूजा के दौरान मां गंगा को गंध, पुष्प, धूप, दीप इत्यादि अर्पित करें. साथ ही भगवान शिव को भी बेलपत्र, चंदन, भांग, धतूरा इत्यादि अर्पित करें. पूजा के दौरान मां गंगा के मंत्रों का जाप करें और अंत में मां गंगा की आरती के साथ पूजा संपन्न करें.
2024-06-15 23:07:26हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है. प्रत्येक माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथिके दिन भगवान विष्णु को समर्पित एकादशी व्रत का पालन किया जाता है. वैदिक पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि के दिन अपरा एकादशी व्रत रखा जाएगा. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस विशेष दिन पर भगवान विष्णु की विधिवत उपासना करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है. साथ ही शास्त्रों में एकादशी व्रत के नियमों का भी उल्लेख किया गया है. आइए जानते हैं, एकादशी व्रत शुभ मुहूर्त और नियम.पूजा मुहूर्त - सुबह 07.07 - दोपहर 12.19अपरा एकादशी व्रत के पारण का समय 03 जून को सुबह 8:06 बजे से सुबह 8:24 बजे तक किया जा सकता है.इसे क्यू कहा जाता है अपरा एकादशी ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली अपरा एकादशी का दिन भगवान विष्णु की विशेष आराधना के लिए समर्पित होता है जिसका बहुत अधिक धार्मिक महत्व माना गया है. इस दिन भगवान विष्णु की आराधना करने से श्रीहरि अपने भक्तों से बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं. ऐसा माना जाता है कि जो भी व्यक्ति पूरे विधि-विधान से यह व्रत रखता है, उसको जीवन में अपार तरक्की, अपार धन और मोक्ष की प्राप्ति होती है.क्या आप जानते हैं एकादशी व्रत के नियम इस दिन शुभ रंगों के स्वच्छ वस्त्र पहनें। मन में भगवान विष्णु की छवि का ध्यान करते हुए 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ' का जप और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना विशेष रूप से इस दिन बहुत फलदायी है। इस दिन भक्तों को परनिंदा, छल-कपट,लालच,द्धेष की भावनाओं से दूर रहकर,श्रीनारायण को ध्यान में रखते हुए भक्तिभाव से उनका भजन करना चाहिए। इस दिन आप फलाहार करें। भूलकर भी तामसिक भोजन और चावल नहीं खाएं। इस दिन किसी का दिया हुआ अन्न आदि न खाएं। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाने के बाद स्वयं भोजन करें.अपरा एकादशी व्रत करने के फायदेधार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अपरा एकादशी के दिन व्रत रखने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलता है। इस दिन विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा करने से सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। साथ ही माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। अपरा एकादशी का व्रत करने से पितरों का पिंडदान करने के बराबर फल मिलता है। साथ ही व्रत रखने से घर में धन-धान्य की वृद्धि भी होती हैl पद्य पुराण के अनुसार, जो लोग अपरा एकादशी का व्रत रखते हैं उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है। साथ ही प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है।
2024-06-01 22:11:02हर साल वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा या बुद्ध जयंती का त्योहार मनाया जाता है. इस त्योहार का हिंदू और बौद्ध धर्म दोनों में ही विशेष महत्व है. दरअसल, गौतम बुद्ध को भगवान विष्णु का नौवां अवतार माना जाता है. गौतम बुद्ध ने संसार को सत्य, अहिंसा, प्रेम, दयालुता, करुणा, सहानुभूति और परोपकार का पाठ पढ़ाया था. क्या आप जानते हैं कि गौतम बुद्ध हमेशा से एक परम संन्यासी नहीं थे, बल्कि उनका जन्म एक बहुत ही संपन्न परिवार में हुआ था.बुद्ध पूर्णिमा 2024 शुभ मुहूर्तहिंदू पंचांग के अनुसार, 22 मई, 2024 दिन बुधवार शाम 06 बजकर 47 मिनट पर वैशाख पूर्णिमा तिथि की शुरुआत होगी. वहीं इस तिथि का समापन अगले दिन 23 मई गुरुवार शाम 07 बजकर 22 मिनट पर होगा उदयातिथि को मानते हुए वैशाख पूर्णिमा 23 मई, 2024 को मनाई जाएगी. इस दिन स्नान-दान करने का शुभ मुहूर्त सुबह 4 बजकर 4 मिनट से सुबह 5 बजकर 26 मिनट तक है. वहीं पूजा का समय सुबह 10 बजकर 35 मिनट से दोपहर 12 बजकर 18 मिनट तक है. चंद्रोदय का समय रात 7 बजकर 12 मिनट है.तीर्थ और स्नान का महत्वज्योतिष आचार्य पंडित सुशील शुक्ला शास्त्री कहते हैं की बुद्ध पूर्णिमा के दिन बहुत से लोग तीर्थ में जाते हैं स्नान करते हैं, नदियां तालाब में स्नान करने के बाद घट का दान या जल का दान या बहुत से लोग जल में नीबू मिलाकर शक्कर का घोल बनाकर सभी व्यक्तियों को पिलाते हैं. इससे भी सरस्वती जी प्रसन्न होती हैं और बुद्धि दाता सरस्वती जी उनको वरदान देती हैं. जैसी कामना करोगे उसी तरह से तुम्हारे घर में बुद्धि की वर्षा होगी और उत्तम संस्कार मिलेगा.इस दिन भगवान सत्यनारायण की पूजा और रात्रि में चंद्रमा को अर्घ देने की परंपरा है। इस दिन चंद्रमा को अर्घ्य देने से, पूजा करने से मानसिक शांति तथा घर में धन वैभव की प्राप्ति होती है। । इस दिन दान पुण्य, यज्ञ-हवन, पूजा, पाठ जप तप करने तथा गरीबों को भोजन कराने के साथ साथ गौ तथा जानवरों को जल पिलाने से पित्र देव प्रसन्न होते हैं। भगवान बुद्ध को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है इसीलिए इस दिन सात्विकता का विशेष ध्यान देना चाहिए। इस दिन मांस मदिरा का त्याग कर देना चाहिए। ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि भगवान बुद्ध ने बैसाख शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि को ही बोधगया में बौध वृक्ष के नीचे बुद्धत्व ज्ञान को प्राप्त किया था। तभी से यह दिन बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है।भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त करने के बाद खीर पीकर ही अपना व्रत खोला था। इसी कारण से इस दिन भगवान बुद्ध को खीर का प्रसाद जरूर अर्पित करना चाहिए। इस दिन सूर्योदय पूर्व जगकर घर की साफ सफाई करके स्वयं को स्नान आदि से पवित्र करके पूजा स्थल पर बैठ जाना चाहिए तथा भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी की विशेष पूजा करनी चाहिए। इसके लिए भगवान विष्णु एवं माता पार्वती को शुद्ध जल से स्नान कराकर, वस्त्र, हल्दी, चंदन, रोली, अक्षत, अबीर, गुलाल, पुष्प, फल, फूल, मिष्टान्न अर्पित करके धूप, दीप दिखाकर प्रार्थना करें तथा माता लक्ष्मी एवं भगवान विष्णु का आरती उतारे।गौतम बुद्ध की इस मुद्रा (पोज़) को आज 'महापरिनिर्वाण' के नाम से जाना जाता है. बौद्धों के लिए यह मुद्रा अत्यंत पवित्र हो चुकी है. लेटे हुए गौतम बुद्ध की प्रतिमा को उनके अंतिम संदेश की वजह से विशेष स्थान मिला हुआ है. बुद्ध की नकल करते हुए कई बौद्ध उनकी तरह लेटने लगे. यह एक संस्कृति बन गई. लेकिन वे केवल इस मुद्रा की नकल कर सकते हैं, बुद्ध नहीं बन सकते. ये भी पढ़िए:- 1. चारधाम यात्रा में हजारों श्रद्धालु बिना दर्शन के लौटे घर! जानिए क्या है वजह2. कलकत्ता हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, पश्चिम बंगाल में 2010 के बाद जारी सभी OBC प्रमाणपत्र किए खारिज
2024-05-22 23:09:35सनातन धर्म में एकादशी का दिन सबसे खास माना जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार, वैशाख शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मोहिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. इस दिन भगवान विष्णु के मोहिनी स्वरूप की पूजा की जाती है तथा एकादशी का व्रत किया जाता है.मोहिनी एकादशी शुभ मुहूर्त एकादशी तिथि का प्रारंभ 18 मई यानी कल सुबह 11 बजकर 22 मिनट पर हो चुका है और समापन 19 मई यानी आज दोपहर 1 बजकर 50 मिनट पर होगा. मोहिनी एकादशी का पारण 20 मई यानी कल सुबह 5 बजकर 28 मिनट से लेकर सुबह 8 बजकर 12 मिनट तक होगा.मोहिनी एकादशी पूजन विधि एकादशी के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर पवित्र स्नान करें और साफ-स्वच्छ कपड़े पहनें. इसके बाद लाल कपड़ा लपेटकर कलश स्थापना करें और घी का एक दीपक जलाएं. फिर भगवान विष्णु को चंदन, अक्षत, पंचामृत, फूल, धूप, दीपक, फल और नैवेद्य आदि अर्पित करें. उसके बाद ''विष्णु सहस्रनाम'' का पाठ करें और भगवान विष्णु की आरती करें. इस दिन मोहिनी एकादशी की व्रत कथा का पाठ अवश्य करें या सुनें. रात में श्री हरि विष्णु का ध्यान करते हुए भजन कीर्तन आदि करें और जागरण करें.केले के पेड़ की पूजाधार्मिक मान्यताओं के अनुसार, केले के पेड़ की पूजा से भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं. ऐसे में मोहिनी एकादशी के दिन केले के पेड़ के समक्ष घी का दीपक जलाएं. इसके बाद उसकी विधिपूर्वक पूजा करें और प्रार्थना करें. इस उपाय को करने से आर्थिक संकट समाप्त होता है. साथ ही घर से दरिद्रता दूर होती है.मोहिनी एकादशी पूजा सामग्री लिस्टगंगाजल , चौकी, सुपारी, तुलसी दल, नारियल, चंदन, पीला कपड़ा, आम के पत्ते, कुमकुम, फूल, मिठाई, अक्षत, लौंग, पंचमेवा, धूप, दीप, फल भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की प्रतिमा आदि.पूजा के दौरान इस मंत्र का करें जापशान्ताकारम् भुजगशयनम् पद्मनाभम् सुरेशम्विश्वाधारम् गगनसदृशम् मेघवर्णम् शुभाङ्गम्।लक्ष्मीकान्तम् कमलनयनम् योगिभिर्ध्यानगम्यम्वन्दे विष्णुम् भवभयहरम् सर्वलोकैकनाथम्॥
2024-05-19 09:40:41हिंदू धर्म के लिए सीता नवमी का पर्व बेहद खास होता है। ग्रंथों और वेदों के अनुसार, माता सीता का जन्म इसी शुभ दिन पर हुआ था। सीता नवमी को लोग जानकी नवमी के नाम से भी जानते हैं। इस दिन को भक्त बड़े उत्साह और उमंग के साथ मनाते हैं। यह पर्व हर साल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। इस साल यह 16 मई, 2024 यानी की आज मनाया जाता है वैदिक पंचांग के अनुसार वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि की शुरुआत 16 मई 2024 को सुबह 04 बजकर 51 मिनट पर हो रही है। साथ ही इस तिथि का समापन 17 मई को सुबह 07 बजकर 19 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि को आधार मानते हुए सीता नवमी 16 मई गुरुवार के दिन मनाई जाएगी। वहीं सीता नवमी शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 07 मिनट से शुरू होकर दोपहर 01 बजकर 22 मिनट तक रहेगा।वैष्णव संप्रदाय में आज माता सीता के निमित्त व्रत रखने की परंपरा भी है। आज व्रत रखकर श्री राम की मूर्ति सहित माता सीता का पूरे विधि-विधान से पूजन करना चाहिए और उनकी स्तुति करनी चाहिए । कहते हैं इस दिन जो कोई भी व्रत करता है, उसे सोलह महादानों और सभी तीर्थों के दर्शन का फल मिलता है। लिहाजा आज के दिन का आपको लाभ अवश्य ही उठाना चाहिए। साथ ही माता सीता और श्री राम के मंत्र का 11 बार जप करना चाहिए। मंत्र इस प्रकार है- श्री सीतायै नमः। श्री रामाय नमः। इस प्रकार मंत्र जप करके माता सीता और श्री राम,दोनों को पुष्पांजलि चढ़ाकर उनका आशीर्वाद लें। इससे आपके सारे मनोरथ सिद्ध होंगे, आपकी सारी इच्छाएं पूरी होंगी।वाल्मिकी रामायण के अनुसार एक बार मिथिला में भयंकर सूखा पड़ा था जिस वजह से राजा जनक बेहद परेशान हो गए थे। इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए उन्हें एक ऋषि ने यज्ञ करने और खुद धरती पर हल चलाने का सुझाव दिया। राजा जनक ने अपनी प्रजा के लिए यज्ञ करवाया और फिर धरती पर हल चलाने लगे। तभी उनका हल धरती के अंदर किसी वस्तु से टकराया। मिट्टी हटाने पर उन्हें वहां सोने की डलिया में मिट्टी में लिपटी एक सुंदर कन्या मिली। जैसे ही राजा जनक सीता जी को अपने हाथ से उठाया, वैसे ही तेज बारिश शुरू हो गई। राजा जनक ने उस कन्या का नाम सीता रखा और उसे अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार किया।
2024-05-16 09:24:38हिंदू धर्म के अनुसार मंगलवार का दिन हनुमानजी को समर्पित है. मंगलवार को संकटमोचन हनुमान जी की पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से पूजा पाठ करने से वे जल्दी प्रसन्न होते हैं. हिंदी कैलेंडर का दूसरा महीना वैशाख होता है और तीसरा ज्येष्ठ माह होता है. जो कि पूजा-पाठ के लिहाज बहुत ही महत्वपूर्ण और शुभ माना गया है क्योंकि ज्येष्ठ माह में आने वाले प्रत्येक मंगलवार को बड़ा मंगलवार कहा जाता है. आम बोलचाल की भाषा में इसे बुढ़वा मंगलवार भी कहते हैं और इस दिन हनुमान जी के वृद्ध स्वरूप का पूजन किया जाता है. इसके साथ ही यदि बुढ़वा मंगलवार के दिन भगवान राम का भी पूजन किया जाए तो शुभ फल प्राप्त होता है. आइए जानते हैं ज्येष्ठ माह में कब-कब बड़ा मंगल?पंचांग के अनुसार, 22 मई की शाम को 6 बजकर 48 मिनट पर पूर्णिमा तिथि का आरंभ होगा और 23 मई को पूर्णिमा तिथि शाम में 7 बजकर 23 मिनट तक रहेगी। वहीं, ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष का आरंभ प्रतिपदा तिथि यानी 24 मई को है। इसी दिन से ज्येष्ठ मास का आरंभ होगा। ऐसे में 28 मई को पहला बुढवा मंगल आएगा।अबकी बार बड़े मंगल कितने हैं?पहला बड़ा मंगल – 28 मई 2024दूसरा बड़ा मंगल – 04 जून 2024तीसरा बड़ा मंगल – 11 जून 2024चौथा बड़ा मंगल – 18 जून 2024धार्मिक मान्यता है कि बुढ़वा मंगल या बड़े मंगल को व्रत रखने और हनुमान जी की पूजा-अर्चना करने से भूत-प्रेत का डर, बाधा, दुखों और कष्टों से छुटकारा है. बड़ा मंगल के दिन हनुमान मंदिरों में भंडारे का आयोजन किया जाता है. यह भी मान्यता है कि बड़ा मंगल का व्रत करने से जीवन से सभी नकारात्मकता खत्म होती है और घर में सुख-समृद्धि बढ़ती हैबड़ा मंगल का पूजा- पाठ विधि बड़ा मंगल लखनऊ के अलावा पूरे देश में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन जगह-जगह लंगर लगाएं जाते हैं.बड़ा मंगल के दिन सूर्य निकलने से पहले यानी ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान कर लें और साफ कपड़े पहन लें.इसके बाद हनुमानजी की प्रतिमा को गंगाजल से साफ करें.फिर पूजा स्थान पर लाल फूल, अक्षत, धूप, दीप, चंदन और लाल या नारंगी लंगोट हनुमान जी को अर्पित करें.फिर हनुमान जी को मोतीचूर का लड्डू या बूंदी का भोग लगाएं.मान्यता है कि इससे हनुमानजी प्रसन्न होते हैं और मनोवांछित फल देते हैं.बुढ़वा मंगल क्यों मनाया जाता है?पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक बार महाभारत काल में भीम को अपनी शक्तियों पर बहुत घमंड आ गया था जिसके बाद हनुमानजी ने बूढ़े वानर के रूप में जन्म लेकर भीम का घमंड तोड़ा. उन्होंने वारन का रूप धारण कर भीम को पराजित कर दिया था और जिस दिन यह घटना हई उस दिन मंगलवार था. इसलिए बड़ा मंगल मनाया जाता है.
2024-05-11 23:20:39वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया कहा जाता है. इस दिन सूर्य और चंद्रमा दोनों ही अपनी उच्च राशि में स्थित होते हैं और शुभ परिणाम देते हैं. इन दोनों की सम्मिलित कृपा का फल अक्षय होता है. अक्षय तृतीया पर मूल्यवान वस्तुओं की खरीदारी और दान-पुण्य के कार्य भी शुभ माने गए हैं. विशेषकर सोना खरीदना इस दिन सबसे ज्यादा शुभ होता है. इससे धन की प्राप्ति और दान का पुण्य अक्षय बना रहता है. इस साल अक्षय तृतीया का त्योहार शुक्रवार, 10 मई को मनाया जाएगा. आइए जानते हैं कि आखिर अक्षय तृतीया की तिथि को इतना शुभ क्यों माना जाता है.अक्षय तृतीया का महत्वऐसी मान्यताएं हैं कि अक्षय तृतीया पर सोने-चांदी की चीजें खरीदने से जातक का भाग्योदय होता है. इसके अलावा, पवित्र नदियों में स्नान, दान, ब्राह्मण भोज, श्राद्ध कर्म, यज्ञ और ईश्वर की उपासना जैसे उत्तम कार्य इस तिथि पर अक्षय फलदायी माने गए हैं. धार्मिक मान्यता अनुसार, इस दिन शुरू किया गया कोई भी कार्य आसानी से संपन्न हो जाता है. इस दिन आप शुभ मुहूर्त देखे बिना कोई भी कार्य संपन्न कर सकते हैं.इस दिन को क्या किया जाता है?अक्षय तृतीया के शुभ दिन पर लोग सोना, चांदी और अन्य कीमती धातुएं खरीदते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान कुबेर को भगवान शिव और भगवान ब्रह्मा ने आशीर्वाद दिया था और उन्हें स्वर्ग की संपत्ति का रक्षक बनाया गया था। लोग इस दिन को कई अनुष्ठानों के साथ मनाते हैं। भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा करने से लेकर विवाह, सगाई या व्यवसाय जैसे शुभ काम शुरू करने तक। लोग इस दिन संपत्ति खरीदना या कोई नया उद्यम शुरू करना भी पसंद करते हैं।
2024-05-09 10:03:51परशुरामजी की जयंती वैशाख मास में शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है। इस पावन दिन को अक्षय तृतीया कहा जाता है। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया पर भगवान विष्णु के अवतार परशुराम का जन्म हुआ था। भगवान परशुराम भार्गव वंश में जन्मे भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं, उनका जन्म त्रेतायुग में हुआ था। माना जाता है कि इस दिन किया गया दान-पुण्य कभी क्षय नहीं होता। अक्षय तृतीया के दिन जन्म लेने के कारण ही भगवान परशुराम की शक्ति भी अक्षय थी। इतना ही नहीं इनकी गिनती तो महर्षि वेदव्यास, अश्वत्थामा, राजा बलि, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, ऋषि मार्कंडेय सहित उन आठ अमर किरदारों में होती है जिन्हें कालांतर तक अमर माना जाता है। उनके पिता का नाम जमदग्नि और माता का नाम रेणुका था l पौराणिक ग्रंथों में वर्णित है कि भगवान परशुराम अत्यंत क्रोधी स्वभाव के थे। इनके क्रोध से देवी-देवता भी थर-थर कांपते थे। धार्मिक मान्यता के अनुसार, एक बार परशुराम ने क्रोध में आकर भगवान गणेश का दांत तोड़ दिया था। वहीं पिता के कहने पर उन्होंने अपनी मां को भी मार दिया था। इस दिन भगवान विष्णु के परशुराम अवतार की पूजा करने से शौर्य, कांति एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है और शत्रुओं का नाश होता है। पंचांग के मुताबिक, 2024 यानी इस साल में परशुराम जयंती 10 मई को शुरू होगी, जो वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को सुबह 4:17 बजे से लेकर 11 मई को दोपहर 2:50 बजे तक रहेगी। जबकि उदयातिथि के मुताबिक देखा जाए तो 10 मई को ही परशुराम जयंती मनाई जाएगी, क्योंकि भगवान परशुराम का जन्म प्रदोष काल में हुआ था। इसलिए, परशुराम जयंती की पूजा शाम के समय में ही की जाती है।माता का वध क्यों किया ?भगवान परशुराम जी का अवतार सबसे प्रचंड और सबसे व्यापक रहा है. मान्यता है कि परशुराम जी का क्रोध ऐसा था कि धरती पर बढ़ रहे अत्याचार को रोकने के लिए उन्होंने 21 बार 21 बार क्षत्रियों का संहार किया था. वहीं पिता की आज्ञा का मान रखने के लिए भगवान परशुराम ने अपनी माता का वध कर दिया था, हालांकि बाद में पिता से ही वरदान मांगकर उन्होंने अपनी माता को पुन: जीवित कर लिया था.यह भी पढ़े : 1. Vaccine Certificate: कोविड वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट से गायब हुई पीएम मोदी की तस्वीर? जानिए स्वास्थ्य मंत्रालय ने क्या कहा2. Loksabha Election 2024: पीएम मोदी के सामने श्याम रंगीला ने चुनाव लड़ने का किया ऐलान
2024-05-05 10:09:10