बुद्ध पूर्णिमा कब है? जानें सही डेट, शुभ मुहूर्त-पूजा विधि और इस दिन का महत्व

बुद्ध पूर्णिमा कब है? जानें सही डेट, शुभ मुहूर्त-पूजा विधि और इस दिन का महत्व
Shubham Pandey JHBNEWS टीम,सूरत 2024-05-22 23:09:35

हर साल वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा या बुद्ध जयंती का त्योहार मनाया जाता है. इस त्योहार का हिंदू और बौद्ध धर्म दोनों में ही विशेष महत्व है. दरअसल, गौतम बुद्ध को भगवान विष्णु का नौवां अवतार माना जाता है. गौतम बुद्ध ने संसार को सत्य, अहिंसा, प्रेम, दयालुता, करुणा, सहानुभूति और परोपकार का पाठ पढ़ाया था. क्या आप जानते हैं कि गौतम बुद्ध हमेशा से एक परम संन्यासी नहीं थे, बल्कि उनका जन्म एक बहुत ही संपन्न परिवार में हुआ था.

बुद्ध पूर्णिमा 2024 शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार, 22 मई, 2024 दिन बुधवार शाम 06 बजकर 47 मिनट पर वैशाख पूर्णिमा तिथि की शुरुआत होगी. वहीं इस तिथि का समापन अगले दिन 23 मई गुरुवार शाम 07 बजकर 22 मिनट पर होगा उदयातिथि को मानते हुए वैशाख पूर्णिमा 23 मई, 2024 को मनाई जाएगी. इस दिन स्नान-दान करने का शुभ मुहूर्त सुबह 4 बजकर 4 मिनट से सुबह 5 बजकर 26 मिनट तक है. वहीं पूजा का समय सुबह 10 बजकर 35 मिनट से दोपहर 12 बजकर 18 मिनट तक है. चंद्रोदय का समय रात 7 बजकर 12 मिनट है.

तीर्थ और स्नान का महत्व

ज्योतिष आचार्य पंडित सुशील शुक्ला शास्त्री कहते हैं की बुद्ध पूर्णिमा के दिन बहुत से लोग तीर्थ में जाते हैं स्नान करते हैं, नदियां तालाब में स्नान करने के बाद घट का दान या जल का दान या बहुत से लोग जल में नीबू मिलाकर शक्कर का घोल बनाकर सभी व्यक्तियों को पिलाते हैं. इससे भी सरस्वती जी प्रसन्न होती हैं और बुद्धि दाता सरस्वती जी उनको वरदान देती हैं. जैसी कामना करोगे उसी तरह से तुम्हारे घर में बुद्धि की वर्षा होगी और उत्तम संस्कार मिलेगा.

इस दिन भगवान सत्यनारायण की पूजा और रात्रि में चंद्रमा को अर्घ देने की परंपरा है। इस दिन चंद्रमा को अर्घ्य देने से, पूजा करने से मानसिक शांति तथा घर में धन वैभव की प्राप्ति होती है। । इस दिन दान पुण्य, यज्ञ-हवन, पूजा, पाठ जप तप करने तथा गरीबों को भोजन कराने के साथ साथ गौ तथा जानवरों को जल पिलाने से पित्र देव प्रसन्न होते हैं। भगवान बुद्ध को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है इसीलिए इस दिन सात्विकता का विशेष ध्यान देना चाहिए। इस दिन मांस मदिरा का त्याग कर देना चाहिए। ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि भगवान बुद्ध ने बैसाख शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि को ही बोधगया में बौध वृक्ष के नीचे बुद्धत्व ज्ञान को प्राप्त किया था। तभी से यह दिन बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है।

भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त करने के बाद खीर पीकर ही अपना व्रत खोला था। इसी कारण से इस दिन भगवान बुद्ध को खीर का प्रसाद जरूर अर्पित करना चाहिए। इस दिन सूर्योदय पूर्व जगकर घर की साफ सफाई करके स्वयं को स्नान आदि से पवित्र करके पूजा स्थल पर बैठ जाना चाहिए तथा भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी की विशेष पूजा करनी चाहिए। इसके लिए भगवान विष्णु एवं माता पार्वती को शुद्ध जल से स्नान कराकर, वस्त्र, हल्दी, चंदन, रोली, अक्षत, अबीर, गुलाल, पुष्प, फल, फूल, मिष्टान्न अर्पित करके धूप, दीप दिखाकर प्रार्थना करें तथा माता लक्ष्मी एवं भगवान विष्णु का आरती उतारे।

गौतम बुद्ध की इस मुद्रा (पोज़) को आज 'महापरिनिर्वाण' के नाम से जाना जाता है. बौद्धों के लिए यह मुद्रा अत्यंत पवित्र हो चुकी है. लेटे हुए गौतम बुद्ध की प्रतिमा को उनके अंतिम संदेश की वजह से विशेष स्थान मिला हुआ है. बुद्ध की नकल करते हुए कई बौद्ध उनकी तरह लेटने लगे. यह एक संस्कृति बन गई. लेकिन वे केवल इस मुद्रा की नकल कर सकते हैं, बुद्ध नहीं बन सकते. 

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