Aligarh Muslim University को अल्पसंख्यक दर्जा देने पर सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ?

Aligarh Muslim University को अल्पसंख्यक दर्जा देने पर सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ?
Shubham Pandey JHBNEWS टीम,सूरत 2024-11-08 13:49:55

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) एक अल्पसंख्यक संस्थान है या नहीं, इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है। सात जजों की बेंच ने इस मामले में निर्णय सुनाया है। यह फैसला इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि आज मुख्य न्यायाधीश (CJI) चंद्रचूड़ सेवानिवृत्त हो रहे हैं और सेवानिवृत्ति के दिन ही उन्होंने यह ऐतिहासिक फैसला दिया है। सात जजों की बेंच ने 4-3 के बहुमत से इस पर निर्णय दिया है।

सात जजों की बेंच ने 4-3 के बहुमत से फैसला दिया कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) एक अल्पसंख्यक संस्थान ही माना जाएगा। इस ऐतिहासिक फैसले में CJI के नेतृत्व में बेंच ने कहा कि अल्पसंख्यक संस्थानों के नए मापदंड तय किए जाएंगे और यह जिम्मेदारी तीन जजों की बेंच को सौंपी गई है। इस मामले में CJI समेत चार जजों ने एकमत होकर निर्णय दिया था, जबकि अन्य तीन जजों ने असहमति नोट दी थी। CJI और जस्टिस पारदीवाला ने एकमत होकर निर्णय दिया, जबकि जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा का फैसला अलग था। कोर्ट ने अपने निर्णय में AMU को अल्पसंख्यक संस्थान माना और 1967 का फैसला रद्द कर दिया।

इस मामले में CJI चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि इस पर निर्णय देते समय हमारे सामने कई सवाल थे कि किसी शैक्षणिक संस्थान को अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में मान्यता देने का तर्क क्या है? इस विश्वविद्यालय की स्थापना धार्मिक और भाषाई ज्ञान हेतु अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा की गई है, इसलिए इसे अल्पसंख्यक संस्थान मानना उचित है। इसका संचालन अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा ही किया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत किसी भी धार्मिक समुदाय को संस्थान स्थापित करने का अधिकार प्राप्त है। इसलिए इस संस्थान को अल्पसंख्यक का दर्जा न देने से इस अनुच्छेद का उल्लंघन होगा। इस अनुच्छेद के तहत किसी भी अल्पसंख्यक समुदाय को उनके द्वारा स्थापित शैक्षणिक संस्थानों में अपनी ही समुदाय के लोगों को प्राथमिकता देने का अधिकार है।

AMU के अल्पसंख्यक दर्जे पर विवाद 1965 में शुरू हुआ था। तत्कालीन केंद्र सरकार ने 20 मई 1965 को AMU एक्ट में संशोधन कर इसकी स्वायत्तता खत्म कर दी थी, जिसे अजीज बाशा ने 1968 में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। तब पांच जजों की बेंच ने फैसला दिया कि AMU अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है। इसमें खास बात यह थी कि AMU को पक्षकार नहीं बनाया गया था। 1972 में इंदिरा गांधी सरकार ने भी माना था कि AMU अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है। इसके विरोध में विश्वविद्यालय में भी आंदोलन हुआ था। बाद में इंदिरा गांधी सरकार ने 1981 में AMU एक्ट में संशोधन किए और विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान घोषित कर दिया। फिर 2006 में, AMU के JN मेडिकल कॉलेज में मुस्लिमों के लिए 50% MD, MS सीटों को आरक्षित रखने के विरोध में हिंदू छात्र इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचे थे। हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि AMU अल्पसंख्यक संस्थान नहीं हो सकता। इस फैसले के विरोध में AMU सुप्रीम कोर्ट गई थी और तभी से यह केस विचाराधीन था।