Child marriage India: बाल विवाद कानून पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, जाने CJI चंद्रचूड़ क्या बोले.......
सुप्रीम कोर्ट में बाल विवाह रोकथाम कानून को लेकर शुक्रवार को सुनवाई हुई। इस कानून के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए उच्चतम न्यायालय ने कई दिशा-निर्देश जारी किए। एससी ने कहा कि बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 सभी पर्सनल लॉ पर प्रभावी होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बाल विवाह निषेध कानून में कुछ खामियां हैं। साथ ही, यह टिप्पणी की कि बाल विवाह से जीवनसाथी चुनने का विकल्प छिन जाता है।
NCW के मुताबिक, यह याचिका इसलिए दाखिल की गई थी कि नाबालिग मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकारों का पालन हो सके, ताकि इस्लामिक पर्सनल लॉ को बाकी धर्मों पर लागू होने वाले कानूनों के बराबर किया जा सके। बाल आयोग ने मांग की है कि 18 साल के बच्चों की रक्षा के लिए बनाए गए संवैधानिक कानूनों को सही तरह से लागू किया जाए।
बाल आयोग ने हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने के लिए बाल विवाह रोकने वाला कानून, 2006 और POCSO के प्रावधानों को आधार बनाया। आयोग ने कहा कि यह आदेश बाल विवाह रोकने वाले कानून का उल्लंघन करता है। यह सेक्युलर कानून है और सभी पर लागू होता है। इसमें यह तर्क भी दिया गया कि POCSO के प्रावधानों के मुताबिक, 18 साल से उम्र का कोई बच्चा सही अनुमति नहीं दे सकता।
जुलाई 2024 में असम सरकार की कैबिनेट ने असम मुस्लिम निकाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम, 1935 को हटाकर अनिवार्य रजिस्ट्रेशन लॉ को लाने के लिए एक बिल को मंजूरी दी थी। 1935 के कानून के तहत स्पेशल कंडीशन में कम उम्र में निकाह करने की अनुमति दी जाती थी।
जुलाई में जारी इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन रिपोर्ट ने बाल विवाह से निपटने के लिए असम सरकार के प्रयासों की सराहना की। रिपोर्ट में कहा गया कि कानूनी कार्रवाई के जरिए असम में बाल विवाह के मामलों को कम किया है। 2021-22 और 2023-24 के बीच राज्य के 20 जिलों में बाल विवाह के मामलों में 81% की कमी आई है।
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नाबालिग पत्नी से रेप पर केंद्र ने क्या कहा था?
बाल विवाह रोकथाम कानून साल 2006 में केंद्र सरकार द्वारा लाया गया था. इस कानून ने 1929 के बाल विवाह कानून की जगह ली. इस कानून का मकसद बच्चों की शादियों को रोकना था. ताकि इतनी कम उम्र में उनके जीवन को शादी जैसी जिम्मेदारी से मुक्त कर उन्हें पढ़ाई लिखाई की तरफ ले जाया जा सके. इससे सुप्रीम कोर्ट ने एक दिन पहले इसी मामले में कहा कि वह भारतीय दंड संहिता (IPC) और नए कानून भारतीय न्याय संहिता (BNS) के उन दंडनीय प्रावधानों की संवैधानिक वैधता पर निर्णय लेंगे जो रेप के अपराध के लिए पति को कानूनी एक्शन से छूट देता है. अगर पति अपनी नाबालिग पत्नी को उसके साथ यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करता है तो उसपर विचार किया जाएगा. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने केंद्र सरकार की उस दलील पर याचिकाकर्ताओं की राय जाननी चाही थी कि इस तरह के काम को कानून के तहत दंडनीय बनाने से मैरिज रिलेशन पर गंभीर असर पड़ेगा या नहीं.
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