विश्व पर्यावरण दिवस :- 'वंदेभारत पद यात्रा' आशुतोष पांडेय पूरे भारतवर्ष में पैदल निकल पड़े पर्यावरण को बचाने

विश्व पर्यावरण दिवस :- 'वंदेभारत पद यात्रा' आशुतोष पांडेय पूरे भारतवर्ष में पैदल निकल पड़े पर्यावरण को बचाने
Shubham Pandey JHBNEWS टीम,सूरत 2024-06-05 09:40:15

पर्यावरण को लेकर आज भी हम जागरूक नहीं हो पाए और धर्मनगरी अयोध्या का एक युवा आशुतोष पांडे अपनी 11 लाख रुपए सालाना वेतन वाली नौकरी छोड़कर सिर्फ पर्यावरण की अलख जगाने 16 हजार किमी की पदयात्रा पर निकल पड़ा है। इस पदयात्रा को उन्होंने वंदे भारत पद यात्रा नाम दिया है।

आशुतोष पाण्डेय का उम्र 25 वर्ष है, परंतु हौसला और हिम्मत माउंट एवरेस्ट की चोटी जैसी है । आशुतोष 22 दिसबंर 2022 को पर्यावरण संरक्षण के लिए पैदल ही भारत यात्रा पर निकल पड़े। पाण्डेय अपने माता- पिता को बिना बताए शाम को आपने घर ने एक बैग लेकर निकल पड़े, जिसमे बैग के अंदर अपना जरूरी सामान और कुछ कपड़े, चार्जर लेकर वंदे भारत पद यात्रा पर निकल पड़े l उत्तर प्रदेश से चलकर वे बिहार, छत्तीसगढ़, ओडिशा, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र समेत 13 राज्यों से होते हुए बाबा की नगरी उत्तराखंड पहुंचे हैं।

अब तक आशुतोष 21 राज्य, 75 जिले, 1700 गांवों से लोगों को जागरूक करते हुए जा रहे हैं। आशुतोष के मन में प्रकृति संरक्षण का संदेश देने का यह विचार कहां से आया? यह पूछने पर वे कहते हैं कि कोरोना काल में आक्सीजन की पूर्ति न होने से मेरे एक प्रिय मित्र की मृत्यु हो गई थी। उस क्षण लगा कि यदि आक्सीजन नहीं, प्रकृति नहीं, पर्यावरण नहीं है तो फिर हम सबका जीवन क्षणभंगुर है। तभी से अशुतोष ठान लिया कि पूरे भारत में 11 लाख से अधिक पेड़ लगाने का संकल्प लिया और अपनी मंजिल को पाने के लिए 2 साल में 16,000 किलोमीटर चलने को ठाना l 

आशुतोष पांडेय अपने पदयात्रा के दौरान भागवत गीता लेकर चलते हैं. उन्होंने बताया कि वो रास्ते में होटल, मंदिर और आश्रम में रुकते हैं. वो कपड़े और कुछ जरूरी सामान अपने साथ रखते हैं. उनके बैग का वजन 21 किलों है. उन्होंने बताया कि वो जहां जाते हैं. वहां उनको कोई न कोई खाना खिला देता है. उनके बैग में खाने के साथ- साथ कुछ किताबे रखी हैं. कभी कभी बैठकर वो किताबे पढ़ते हैं. अब तक चल-चलकर उनके 3 जूते खराब हो चुके हैं. लगातार चलने से उनके पैरों में दर्द भी होता है, लेकिन वो कहते हैं इसमें भी उन्हें सुकून मिलता है.


आशुतोष का परिवार यूपी के सुल्तानपुर में रहता है. आशुतोष का परिवार आज उनके के लिए रो रहा है. माता पिता उनके पदयात्रा के फैसले के समर्थन में नहीं है. आशुतोष ने बताया कि घर वाले पदयात्रा का मतलब सन्यास समझ रहे हैं. इसके कारण परिवार वाले डर गए हैं. रिश्तेदारों और समाज के लोगों से आलोचना सुनकर उनकी माता बीमार हो गई हैं. यही नहीं वो रो रही हैं, लेकिन वो कहते हैं की हर बच्चे को एक बार अपने मां बाप को रुलाना चाहिए. लेकिन वो खुशी के आंसू होने चाहिए. वो कहते हैं कि 130 करोड़ लोग के पास आधार कार्ड है, लेकिन उनकी पहचान नहीं है. वो कहते हैं कि वो अपने परिवार के लिए पैसे नहीं कमा सकते, लेकिन उनको सम्मान दिला सकते हैं.

दो साल बाद पहुंचेंगे अयोध्या

आशुतोष ने पैदल भारत यात्रा का अंतिम पड़ाव श्रीराम की नगरी अयोध्या को रखा है। वे दो वर्ष बाद अर्थात जनवरी 2026 में अयोध्या पहुंचने का लक्ष्य बनाकर चल रहे हैं। तब अयोध्या में एक लाख पौधों का रोपण किया जाएगा, जिसे श्रीराम वाटिका नाम दिया जाएगा। आशुतोष बाद में अपनी टीम के साथ उस वाटिका का संरक्षण भी करेंगे।

आशुतोष 'सेव द इन्वायरमेंट' लिखा बोर्ड लेकर अपने बैग में तिरंगा लगाए लोगों को पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूक कर रहे हैं। बोर्ड में पैदल 16,000 किमी चलने का लक्ष्य भी लिखा है। आशुतोष प्रतिदिन करीब 30 किमी चलते हैं। मध्य प्रदेश के बाद वे राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश होते हुए अयोध्या पहुंचेंगे।

प्रदूषण की वजह से घट रही उम्र

आशुतोष ने बताया कि आए दिन आए शोध बताते हैं कि प्रदूषण की वजह से दिल्ली में रहने वालों की उम्र कम होती जा रही है। फिर भी हम नहीं सुधर रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं हो रहे हैं। इसके लिए हम सब भारतवासियों, खासकर युवाओं को पर्यावरण संरक्षण के लिए आगे आना चाहिए। अगर कुछ वर्षों तक हमने और लापरवाही की, तो जलवायु परिवर्तन से मनुष्यों का ही नहीं बल्कि प्रत्येक प्राणी का बहुत नुकसान होगा। यह अभी नहीं जागे तो फिर कभी नहीं वाली स्थिति है।