गुजरात के प्रसिद्ध लोक साहित्यकार पद्मश्री जोरावरसिंह जादव का निधन
गुजरात के प्रसिद्ध लोक साहित्य शोधकर्ता और कथाकार पद्मश्री जोरावरसिंह जादव का निधन हो गया है। उनके निधन की खबर से साहित्य और कला जगत में शोक की लहर दौड़ गई है।
2019 में मिला था पद्मश्री सम्मान
जोरावरसिंह जादव (Zorawarsinh Jadav) लोक साहित्य के शोधकर्ता और लोक कला के प्रोत्साहक थे। उनका जन्म 10 जनवरी, 1940 को हुआ था। लोक साहित्य में उनके अद्वितीय योगदान के लिए वर्ष 2019 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री सम्मान से नवाज़ा था। इसके अलावा उन्हें मेघाणी सुवर्ण चंद्रक, गुजरात साहित्य अकादमी पुरस्कार और झवेरचंद मेघाणी पुरस्कार सहित अनेक सम्मानों से सम्मानित किया गया था।
लोकसाहित्य और लोककला को जीवंत रखने में महत्वपूर्ण योगदान
जोरावरसिंह जादव ने ग्रामीण जीवन से जुड़ी कई कहानियों की रचना की थी। वर्ष 1978 में उन्होंने गुजरात लोककला फाउंडेशन की स्थापना की थी, जिसका उद्देश्य गुजरात और राजस्थान के वंचित व घुमंतु समुदायों के लोक कलाकारों को अपनी कला प्रदर्शित करने के लिए मंच उपलब्ध कराना है। उन्होंने अपने पैतृक गांव धंधुका में एक आकर्षक संग्रहालय का निर्माण भी कराया था, जिसमें गुजरात की लोक कला, लोक संस्कृति और दृश्य कलाओं को प्रदर्शित किया गया है।
उन्होंने सैकड़ों लोककथाएँ, ग्रामीण किस्से, लोकनायकों की जीवन गाथाएँ संकलित कर साहित्य का हिस्सा बनाया। उन्होंने गांव में रहकर ग्रामीण लोगों की बोली, रीति-रिवाज, त्यौहार और पारंपरिक कला का प्रामाणिक दस्तावेजीकरण किया। वे बच्चों के लिए भी कई मनोरंजक और प्रेरक कथाएँ लिखते रहे, ताकि नई पीढ़ी लोकसंस्कृति से जुड़ी रहे।
गुजरात लोककला फाउंडेशन के माध्यम से उन्होंने लोक कलाकारों को प्रशिक्षण, मंच और पहचान दिलाई। उनकी कोशिशों से कई दुर्लभ लोक विधाएँ पुनर्जीवित हुईं। साथ ही उन्होंने धंधुका में संग्रहालय बनाकर वस्त्र कला, लोक वाद्य, मुखौटे, कठपुतलियाँ और अन्य परंपरागत कलाओं को संरक्षित किया।
जोरावरसिंह जादव ने अपने साहित्यिक सफर में ग्रामीण समाज, उसकी जीवनशैली, लोक रीतियों और जनमानस की भावनाओं को विशेष रूप से अभिव्यक्त किया। वे प्रेरक लेखक, कथाकार, शोधकर्ता और लोक संस्कृति के संवाहक के रूप में जाने जाते हैं। उनकी प्रमुख कृतियाँ गुजरात की मिट्टी, समाज, परी कथाएँ और लोक नायकों की कहानी को केंद्र में रखती हैं।