सफलता के पीछे का संघर्ष - जाने "लालो" की कहानी

सफलता के पीछे का संघर्ष - जाने "लालो" की कहानी
Khushbu rajput JHBNEWS टीम,सूरत 2025-11-14 10:37:09

गुजरात : गोंडल के पास एक छोटे से गाँव मेट्ट खंभालिया से शुरू हुआ फिल्म निर्देशक अंकित सखिया का यह सफ़र किसी सपने से कम नहीं है। फिल्म देखने के लिए 30-35 किलोमीटर का सफ़र तय करना पड़ता था, लेकिन फिल्मों के प्रति उनका जुनून कभी कम नहीं हुआ। लोग मज़ाक करते थे - "तुम कौन सी फिल्म बनाओगे?" - लेकिन यही मज़ाक एक दिन प्रेरणा बन गया।

उन्होंने आठवीं कक्षा में ही एडिटिंग की कला सीख ली थी, लेकिन कॉलेज के दिनों में ही उनके दोस्त छूट गए। फिर भी, जीवन के अनुभवों को फिल्मों में ढालने की चाहत ज़िंदा रही। "लालो" बनने का विचार तब आया जब पैसे की कमी थी - लेकिन विश्वास और लगन ही रचनात्मकता के बीज हैं। युवा निर्देशक ने इसे साबित कर दिखाया।

फिल्म का हर किरदार जीवंत है - श्रुधा गोस्वामी भगवान कृष्ण के रूप में शांति और करुणा का एहसास दिलाते हैं, जबकि करण जोशी "लालो" के रूप में एक टूटे हुए लेकिन ईमानदार इंसान की झलक दिखाते हैं। रीवा रच्छ तुलसी के रूप में भावनाओं को जीवंत करती हैं।

अंकित सखिया कहते हैं कि यह फिल्म बहुत कम बजट में, नए कलाकारों के साथ और बहुत कम शोज़ के साथ बनी थी। फिल्म इसलिए सफल रही क्योंकि लोगों ने इसकी मानवीयता से जुड़ाव महसूस किया और धीरे-धीरे हमें ज़्यादा स्क्रीन्स मिलने लगीं। हर मुश्किल ने हमें कहानी पर भरोसा रखना सिखाया।

"लालो" सिर्फ़ एक फिल्म नहीं है, यह संघर्ष से सृजन तक का सफ़र है।