अगर आपको अपनी स्थित बदलनी है तो शिक्षा को हथियार बनाना होगा, जाने कौन है आईएएस विनीत?
आज के समय में छोटी मोटी परेशानी से युवा न जाने कैसे कैसे कदम उठा लेते है। युवाओं को थोड़ा सा संघर्ष करना पड़ता है तो वो पीछे हट जाते है। मुश्किलों का सामना करने के बजाय उसे भागना जरूरी समझते है। लेकिन सभी युवा एक जैसे नहीं होते है। कुछ ऐसे भी होते है जो हमारे लिए प्रेरणा बने हुए है। जिनसे हमें हिम्मत मिलती है। ऐसे लोग समाज के लिए उदाहरण बन जाते है। और न जाने कितने युवा उनसे सीखते है। आज हम इस लेख में एक ऐसे ही शख्स के बारे में बात करेंगे जो आज के युवाओं के लिए उदाहरण है।
बाबा साहब आंबेडकर कहते है कि अगर आपको अपनी स्थित बदलनी है तो शिक्षा को हथियार बनाना होगा। आगे वह कहते हैं कि शिक्षा ही एकमात्र अस्त्र है जो आपको समाज में ऊपर उठा सकती है। आपको बताने की काफी लोग बाबा साहेब की इस बताएं रास्ते पर आगे बढ़े और आज खुद की पहचान बना चुके हैं इन्हीं में से एक है दलित समाज से आने वाले इस IAS विनीत नंदनवार। आज हम बात करेंगे नंदनवार के संघर्ष और IAS बनने तक के सफर के बारे में।
विनीत नंदनवार 2013 बैच के आईएएस ऑफिसर है।
उनका जन्म छत्तीसगढ़ के जगदलपुर में हुआ है.बस्तर हाईस्कूल से उनकी प्रारंभिक शिक्षा हुई और हाइस्कूल की पढ़ाई उन्होंने धरमपुरा कॉलेज से पूरी की. आपको बता दें कि विनीत ने नक्सलवाद को काफी करीब से देखा है. मौजूदा समय में वह छत्तीसगढ़ की नक्सल प्रभावित क्षेत्र दंतेवाड़ा में अपनी सेवा दे रहे हैं, यहां तक पहुंचाने के लिए उन्होंने काफी संघर्ष किया। विनीत एक दलित परिवार से आते हैं उन्होंने साल 2004 में शिक्षाकर्मी की परीक्षा दी जिसमें वह ना पास हुए। उसके बाद पढ़ाई के साथ-साथ उन्होंने छोटी-छोटी नौकरियों करना शुरू कर दिया हालांकि उनके चाचा उनके लिए सबसे बड़े प्रेरणा बने और अक्सर विनीत के हौसले को बढ़ाते रहे।
उनके चाचा ने विनीत के दिमाग में यह बिठा दिया था कि उन्हें एक न एक दिन कलेक्टर ही बना है। जिसके बाद विनीत ने यूपीएससी की तैयारी भी शुरू कर दी। पहले अटेम्प्ट में यूपीएससी नहीं निकाल पाए, फिर उन्होंने और मेहनत किया और हार नहीं मानी संघर्ष शुरू रखा। परंतु दूसरे और तीसरे प्रयास में भी वह असफल रहे, लेकिन चौथे प्रयास में उन्होंने बाजी मारी और यूपीएससी क्लियर कर लिया इसके बाद उनकी जिंदगी बदल गई। उनका ऑल इंडिया रैंक 227 था। विनीत नंदनवार अपनी मां को अपना आदर्श मानते हैं उनका कहना है कि मेरी संघर्ष और मेरे धैर्य में मेरी मां के प्रेरणा मुझे सबसे ज्यादा काम आए। उन्हें से ही मैंने यह सारी चीज चीजें सीखी है। आज मैं जो कुछ भी हूं अपनी मां की वजह से ही हूं।
इसलिए कहा जाता हैं असफलता ही सफलता की पहली सीढ़ी होती है। जिसने वहां हार मान ली वह कभी अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच सकता। असलफता आने से डरने के बजाय उसे अपना शिक्षक मान कर फिर से नई शुरुआत करना चाहिए। अगर आप लगातार किसी चीज के लिए मेहनत कर रहे हैं तो आप सफल जरूर होंगे।