इन 5 सथानो पर दिपक जलाने से माँ लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है
दिवाली अज्ञान (अंधकार) पर ज्ञान (प्रकाश) की जीत का प्रतीक है। जो पांच दिन तक मनाई जाती है. यह भारतीय संस्कृति में धन, स्वास्थ्य और समृद्धि का प्रतिक माना जाता है. ये दीपोत्सव 18 अक्टूबर से 23 अक्टूबर तक भाई दूज पर समाप्त होगा। जिसमे धनतेरस, नरक चतुर्दशी, लक्ष्मी पूजा, गोवर्धन पूजा और भाई बिज का समावेश होता है। ये पाँचो के अपने अलग ही महत्व है. हर दिन का अपना अलग महत्व और पूजन विधि होती है। तो चलिए जानते है की इस दिन दीपक कहाँ जलाने से माँ लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है.
धनतेरस
दीपोत्सव की शुरुआत धनतेरस से होती है. जो की 18 अक्टूबर शनिवार के दिन पड़ने वाला है. धनतेरस के दिन सूर्यास्त के बाद 13 दिए जलाने चाहिए। इससे कुबेर देव की कृपा आप पर बनी रहती है इसके साथ ही धन संबंधी परेशानियां दूर होती हैं। दक्षिण दिशा में शाम को चार मुख वाला यम का दीपक जलाना शुभ माना जाता है।
नरक चतुर्दशी
दूसरे नंबर पर नरक चतुर्दशी आता है.इसे छोटी दिवाली या काली चौदस के रूप भी जाना जाता है. छोटी दिवाली 19 अक्टूबर के दिन मनाया जायेगा। इस दिन हनुमान जी का पूजा का विशेष महत्त्व है इस दिन 14 दीपक जलाने से घर में नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है।
लक्ष्मी पूजा
20 अक्टूबर तीसरा दिन त्योहार का सबसे खास दिन है - लक्ष्मी पूजा। यह वह दिन है जब सूरज अपने दूसरे चरण में प्रवेश करता है। अंधेरी रात होने के बावजूद, इस दिन को बहुत शुभ माना जाता है। रात का अँधेरा धीरे-धीरे गायब हो जाता है क्योंकि पूरे शहर में छोटे-छोटे, टिमटिमाते दीये जलाए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि दिवाली की रात, देवी लक्ष्मी धरती पर विचरण करती हैं और खुशहाली का आशीर्वाद देती हैं। इस शाम को, लोग लक्ष्मी पूजा करते हैं और सभी को घर की बनी मिठाइयाँ बाँटते हैं।
गोवर्धन पूजा
दीपोत्सव का चौथा दिन बुधवार, 22 अक्टूबर को गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाता है। इस दिन गिरिराज महाराज की नाभि पर दीपक जलाना शुभ माना गया है। साथ ही घर के आंगन में दीपक जलाना भी अत्यंत मंगलकारी होता है। आपको बता दे की भगवान कृष्ण ने गोकुल के लोगों को भगवान इंद्र की मूसलाधार बारिश के प्रकोप से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत उठाया था।
भाई दूज
दीपोत्सव का अंतिम दिन भाई दूज है, और इसे यम द्वितीया भी कहा जाता है। इस दिन चौमुखा दीपक घर के बाहर यमराज के नाम से जलाया जाता है। इसे घर के बाहर दक्षिण दिशा में रखा जाता है. इससे अकाल मृत्यु और बाधाएं दूर होती हैं.