जिस पेशे में था सिर्फ पुरुषो का राज, वहाँ एक लड़की ने लिखा नया इतिहास
क्या आप जानते है सोमा बेहरा कौन है ? नहीं न, आज के समय में अगर आप बच्चो से पूछेंगे की तमन्ना भाटिया, आलिया भट्ट, करीना कपूर कौन है तो आपको तुरंत इसका जवाब देंगे, लेकिन मै आपसे पुछु की सोमा बेहरा कौन है तो शायद ही आपको पता होगा की सोमा बेहरा आखिर कौन है. ऐसे बहुत से नाम है जिनको हम नहीं जानते है, एक्चुअल में हमे उनके बारे में जानने की जरूरत है.जी हाँ आज हम बात करेंगे सोमा बेहरा के बारे में, जिन्होंने वो काम किया है जहाँ सिर्फ पुरुष ही उस काम में माहिर थे, लड़कीयों के लिए शायद का मुश्किल हो ! तो चलिए जानते है की कौन है, और उनका काम क्या है ?
उड़ीसा के कटक के शिल्पी कुम्भर साही की सोमा बेहरा अपनी अनोखी पहचान रखती हैं। वह कुम्भार समुदाय की अकेली लड़की हैं, जिन्होंने पूजा पंडालों में माँ दुर्गा की मूर्तियाँ बनाने का काम अपनाया है। इस साल सोमा बेहरा भुवनेश्वर के अलावा नीमापाड़ा और चौद्वार में भी मूर्तियाँ बनाने का जिम्मा लिया है. आपको बता दे की पिछले दो दशकों से वह इस काम को लगातार कर रही हैं। सोमा बेहरा सहित उनकी कुल 7 बहने है,वो पाँचवीं नंबर की है, उनका कोई भाई नही है. कोई भाई नहीं होने के कारण सोमा ने परिवार को सँभालने का निर्णय लिया। इसके साथ ही उन्होंने अपने 73 वर्षीय पिता अभिमन्यु बेहरा के पारंपरिक पेशे को संभालने निर्णय लिया।
सोमा बेहरा बताती है कि “मेरे पिता कटक में दुर्गा पूजा पंडालों के लिए मूर्तियाँ बनाते थे और बचपन से हम उन्हें काम करते हुए देखते आ रहे। मैं जब सातवीं कक्षा में थी, तभी मैंने उनसे इस काम को सीखना शुरू किया। उस समय मेरी उम्र केवल 12 साल थी।”आपको बता दे की शुरुआत से ही सोमा इस काम में आपने पिता की मदद करती थी, लेकिन धीरे-धीरे इस शिल्प की ओर उनकी रुचि इतनी बढ़ गई की उन्होंने स्कूल छोड़ने का निर्णय ले लिया इसके बाद वो स्कूल छोड़ दी, पढाई छोड़ने के बाद सोमा अपने पिता के साथ पंडालों में मूर्तियाँ बनाने जाने लगीं।
अगर हम इस साल की बात करे तो इस साल सोमा चार सामुदायिक पंडालों में मूर्तियाँ बना रही हैं। वह भुवनेश्वर के पालासुनी, कांटिलो के राम मंदिर, नीमापाड़ा के बालकाटी-बनमालिपुर और चौद्वार में हरा-पर्वती की मूर्तियाँ निर्माण करने में लगी हुई हैं। हमें लगता होगा की मूर्ति बनाना कौन सा बड़ा काम है, लेकिन यह एक कला है. मूर्तिकार सिर्फ मूर्ति नहीं बनाता बल्कि मूर्ति में वो जान डाल देता है. तो आइए जानते है की मूर्ति बनाने में सबसे मुश्किल काम कौन सा है ? सोमा बताती है कि माँ दुर्गा का चेहरा, उसमे भी खासकर आँखें बनाना सबसे मुश्किल काम में से एक है। “सबसे कठिन काम माँ दुर्गा की आँखों को आकार देना है। अगर माँ के चेहरे की आँखें और भाव सही नहीं होंगे, तो मूर्ति का आकर्षण नहीं रहेगा। इसलिए मैं इन्हें पूरी निष्ठा और ध्यान से बनाती हूँ और हमेशा एक महिला के दृष्टिकोण से उनकी आँखों और भाव को देखती हूँ।”
अब आप सोच रहे होंगे की मूर्ति बनाने का काम तो सिर्फ दुर्गा पूजा में ही मिलता होगा लेकिन ऐसा नहीं है. तो हम को बता दे की दुर्गा पूजा के अलावा, सोमा भालुकुनी पूजा और गणेश उत्सव के लिए भी मूर्तियाँ बनाने का काम करती हैं। त्योहार बीतने के बाद भी वह छोटी मूर्तियाँ और सजावटी मिट्टी की चीजें बनाने में व्यस्त रहती हैं। अगर हम मूर्तियों की कीमत / चार्ज के बारे में बात करे तो सोमा हर मूर्ति के लिए 40,000 से 50,000 रुपये तक चार्ज करती हैं। उनके इस काम में मेहनत, समर्पण और पारिवारिक परंपरा की झलक साफ़ दिखाई देती है।सोमा की कहानी यह दिखाती है कि कैसे एक महिला ने अपनी मेहनत और कला के दम पर पारंपरिक शिल्प में नया इतिहास रचा और समाज में अपनी अलग पहचान बनाई।
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