H-1B वीज़ा शुल्क वृद्धि: क्या यह अमेरिका के लिए आत्मघाती कदम है? भारत के लिए क्यों अच्छा है?

H-1B वीज़ा शुल्क वृद्धि: क्या यह अमेरिका के लिए आत्मघाती कदम है? भारत के लिए क्यों अच्छा है?
Shubham Pandey JHBNEWS टीम,सूरत 2025-09-20 15:42:25

अमेरिका में H-1B वीज़ा धारकों के लिए एक बड़ी चिंता पैदा हो गई है, क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ऐलान के बाद H-1B वीज़ा के लिए 1,00,000 डॉलर यानी करीब 88.10 लाख रुपये का शुल्क लागू कर दिया गया है। यह नियम तुरंत कानून बन गया है, जो 21 सितंबर, 2025 से लागू होगा। अमेरिका में 70 प्रतिशत से ज़्यादा H-1B वीज़ा धारक भारतीय आईटी पेशेवर हैं। डोनाल्ड ट्रंप के इस नए फ़ैसले का उन पर क्या असर होगा? आइए जानते हैं।

कंपनियों ने कर्मचारियों को दिए आदेश

नए H-1B वीज़ा नियम के तहत केवल सबसे कुशल, वरिष्ठ या परियोजना-महत्वपूर्ण कर्मचारियों को ही नियुक्त किया जाएगा। इससे कनिष्ठ और मध्यम स्तर के कर्मचारियों के लिए एक बड़ा संकट पैदा हो जाएगा। H-1B धारकों के प्रत्येक नए प्रवेश और पुनः प्रवेश पर $100,000 का शुल्क लगाया जाएगा। यदि कोई H-1B कर्मचारी 21 सितंबर के बाद देश छोड़ता है, तो उसकी कंपनी को उसकी वापसी के लिए यह शुल्क देना होगा। अधिकांश कंपनियाँ कई कर्मचारियों को इतनी बड़ी राशि देने से इनकार कर सकती हैं। इसी वजह से माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियों ने कर्मचारियों को अपनी यात्रा योजनाएँ रद्द करने का आदेश दिया है।

नई नौकरी की तलाश कर रहे लोगों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा।

नौकरी गंवाने वाले कर्मचारियों को 60 दिनों की छूट अवधि मिलेगी, जिसके दौरान वे नई कंपनी ढूंढ सकते हैं। लेकिन नई कंपनी को $100,000 का शुल्क भी देना होगा, जिससे उनके लिए नई नौकरी ढूंढना मुश्किल हो जाएगा। PERM (Permanent Employment Information System) प्रक्रिया सख्त होती जा रही है और ग्रीन कार्ड के लिए लंबा इंतजार करना पड़ सकता है, जिससे स्थायी निवास का रास्ता और अनिश्चित हो जाएगा। डोनाल्ड ट्रंप की घोषणा में H-4 आश्रितों का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं है, लेकिन कंपनियां परिवारों को अमेरिका में रहने या तुरंत लौटने की सलाह दे रही हैं, क्योंकि ऐसी चिंताएं हैं कि उनकी स्थिति भी प्रभावित होगी।

भारतीय आईटी कंपनियां प्रभावित होंगी

गौरतलब है कि डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन का कहना है कि यह कदम एच-1बी वीजा के दुरुपयोग को रोकने के लिए उठाया गया है। क्योंकि इससे अमेरिकी कामगारों का वेतन कम हो जाता है। नए नियमों में केवल सबसे कुशल लोगों को ही अनुमति देने पर जोर दिया गया है। ये नियम अमेरिकी श्रम विभाग द्वारा संदिग्ध आवेदनों का ऑडिट करने, डेटा साझा करने और जुर्माना लगाने की एक नई पहल भी हैं। इस फैसले का असर इंफोसिस, टीसीएस, कॉग्निजेंट, विप्रो जैसी भारतीय आईटी कंपनियों के साथ-साथ गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी अमेरिकी कंपनियों पर भी पड़ेगा।